इंदिरा गांधी की हत्या, अब्राहम लिंकन, बेनज़ीर भुट्टो, डॉ श्यामा प्रसाद, महात्मा गांधी, जॉन कैनेडी, किंग शाह फैज़ल, ललित बाबू, लियाक़त अली, पंडित दीनदयाल, फूलन देवी, राजीव गांधी, सद्दाम हुसैन, शेख मुजीबुर रहमान, ज़ियाउर रहमान, ज़ुल्फिकार अली और ओलोफ पामे राजनीति के इतिहास के कुछ ऐसे नाम है जिनकी हत्याओं ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। लेकिन उन हत्याओं का कारण कहीं स्पष्ट नहीं हो पाया। वे हत्याएं कहीं न कहीं एक राज़ बनकर रह गयी। इस शो के ज़रिये हम आप सभी के सामने उन हत्याओं के रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश करेंगे। तो चलिए सुनते हैं ‘राजनीतिक हत्याएं’।
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इंदिरा गांधी की हत्या
27 साल पहले वक्त ठहर गया था। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके ही घर में गोलियों से भून दिया गया था। पूरे देश को हिला देने वाली इस वारदात को कुछ लोगों ने अपनी आंखों से देखा था। आज हम आपके लिए 31 अक्टूबर 1984 को हुए इंदिरा गांधी हत्याकांड का पूरा सच सामने लाएं हैं।
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अब्राहम लिंकन
अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन पूरी दुनिया में अपने काम के लिए प्रख्यात थे। उन्होंने अमेरिका में स्लेवरी या गुलामी प्रथा को पूरी तरह से खत्म कर दिया था, उनकी हत्या से जुड़े कई अहम पहलू अभी तक दुनिया के सामने नहीं आए हैं। दुनिया को लोकतंत्र की नई परिभाषा देने वाले अब्राहम लिंकन को 14 अप्रैल 1865 को वाशिंगटन के ‘फोर्ड थियटर’ में गोली मारी गई थी। लिंकन को गोली एक जाने माने रंगमंच कर्मी जॉन वाइक्स बूथ ने मारी थी। जिस वक्त उन्हें गोली मारी गई थी उस वक्त उनके बॉडीगार्ड जॉन पार्कर उनके साथ नहीं थे। आइये सुनते हैं उनकी मौत से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें।
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बेनज़ीर भुट्टो
बेनज़ीर भुट्टो किसी मुस्लिम देश की कमान संभालने वाली पहली महिला थीं। बेनज़ीर की हत्या के 13 साल बीत चुके हैं। उनके कत्ल का फरमान जारी करने वालों के बारे में दुनिया जितना जान पाई, उससे ज़्यादा लोगों ने देखा कि पाकिस्तान में सिस्टम कैसे काम करता है। आज हम इस एपिसोड के ज़रिये बेनज़ीर के कत्ल से जुड़े सभी राज़ से पर्दा उठाएंगे।
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डॉ श्यामा प्रसाद
डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की मौत आज भी एक रहस्य है। धारणा यह है कि जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ जाकर सच बोलने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। देश की सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाले शख्श डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी का जन्म 6 जुलाई,1901 में कोलकाता हाई कोर्ट के ज़ज आशुतोष मुख़र्जी के घर हुआ था। यह तो सभी जानते है परन्तु उनकी मृत्यु किन हालातों में हुई इसकी खबर आज भी आवाम को पता नहीं है। आइए जानते है, डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की मृत्यु का रहस्य।
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महात्मा गांधी
30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता गांधीजी की हत्या कर दी थी। गांधीजी की हत्या के जुर्म में नाथूराम को 15 नवंबर, 1949 को फांसी दी गई। नाथूराम हिंदू राष्ट्रवाद का कट्टर समर्थक था। उसने बहुत ही करीब से गांधीजी की छाती में तीन गोलियां मारी थीं, जिससे उनका निधन हो गया। आइए, आज जानते हैं कि नाथूराम कौन था और उसने गांधीजी की हत्या क्यों की थी।
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जॉन एफ.कैनेडी
अमेरिका के इतिहास में अब तक 45 राष्ट्रपति रहे हैं, जिनमें से कुछ ऐसे थे जो अपना कार्यकाल ही पूरा नहीं कर सके और कुछ ऐसे थे, जिनकी हत्या कर दी गई थी। आज हम आपको अमेरिका के ऐसे ही एक राष्ट्रपति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी हत्या हुई, लेकिन उस हत्या का रहस्य आज तक नहीं सुलझ पाया है। इस राष्ट्रपति का नाम है जॉन एफ. कैनेडी। अमेरिका के टेक्सास राज्य में 22 नवंबर 1963 को केनेडी की हत्या कर दी गई थी। इस हत्या को लेकर समय-समय पर कई खुलासे हुए हैं, लेकिन आखिर उनकी हत्या के पीछे का कारण क्या था, यह आज हम आपको बताएंगे।
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किंग शाह फैज़ल
किंग शाह फैज़ल 1964 से 1975 तक सऊदी अरब के राजा थे। उन्होंने अपने देश के वित्त को बचाने और आधुनिकीकरण और सुधार की नीति को लागू करने के प्रति काम किया था। उनकी मुख्य विदेश नीति विषयों में इस्लामवाद, साम्यवाद विरोधी और समर्थक-फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद थे। उन्होंने सफलतापूर्वक राज्य की नौकरशाही और उनके शासनकाल को स्थिर किया। सऊदी के बीच उनकी महत्वपूर्ण लोकप्रियता थी। 1975 में उनके भतीजे फैसल बिन मुसाद ने उनकी हत्या कर दी थी। आइये उनकी हत्या से जुड़े सभी पहलुओं के बारे में गौर से सुनें।
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ललित बाबू
कहते हैं महात्मा गांधी के बाद देश में दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक हत्या थी ललित नारायण मिश्र की। वे कांग्रेस के उन गिने-चुने नेताओं में थे जो इंदिरा गांधी को सीधे जवाब दे सकते थे। पूरा बिहार इन्हें प्यार से ललित बाबू कहता था। वे इंदिरा कैबिनेट के सबसे प्रभावशाली मंत्री थे। उनके पास रेल मंत्रालय का जिम्मा था। राजनीति के पंडित कहते हैं कि अगर वह ज़िंदा होते तो पीएम के पद तक पहुंच जाते। वह होते तो शायद आज बिहार भी ऐसा न होता। 3 जनवरी को एक बम ब्लास्ट की वजह से उनकी मौत हो गई थी। इनकी हत्या आज भी एक रहस्य बनी हुई है। क्या है इस मामले की कॉन्सपिरेसी थिअरी? जानने के लिए सुनिए यह एपिसोड।
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लियाक़त अली
16 अक्टूबर का दिन जब रावलपिंडी के कंपनी बाग में लोगों की काफी भीड़ अपने प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को सुनने के लिए जमा थी। लियाकत अली खान ने अपना भाषण शुरू किया की था कि तभी अचानक से उनके ऊपर गोलियों की बौछार हुई। वहां पर अफरा-तफरी मच गयी। जब तक वहां पर सुरक्षाकर्मी संभल पाते तब तक गोलियां लियाकत अली का सीना चीर कर अंदर घुस चुकी थीं। उनके शरीर से बेतहाशा खून बह रहा था। बाद में सुरक्षाबलों की गोलियों ने हत्यारे को भी मौके पर ही मार गिराया। पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली राजनीतिक हत्या थी। इस पूरे हत्याकांड में कई सवालों के जवाब आज तक नहीं मिल सके।
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पंडित दीनदयाल
पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक विचारक तथा संगठनकर्ता थे। वह हिन्दू राष्ट्रवादी तो थे ही, इसके साथ ही साथ भारतीय राजनीति के विशेषज्ञ भी थे। दीनदयाल की मान्यता थी कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति हैं। उन्होंने सम्राट चंद्रगुप्त नामक साहित्य की रचना की। 11 फरवरी को 1968 की रात में रेल यात्रा के दौरान मुगलसराय के समीप वे मृत पाए गए। ऐसे प्रगतिशील नेता की मौत आज तक एक रहस्य ही बनी हुई हैं। कुछ का मानना है की उनकी हत्या कर दी गई, और कुछ का कहना है की ये एक प्राकृतिक मौत थी। उनकी मौत का रहस्य तो आज भी एक रहस्य ही है।
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फूलन देवी
25 जुलाई 2001 को, जब फूलन देवी 38 साल की थीं, तब दिल्ली में उनके घर के सामने उनकी हत्या कर दी गई थी। फूलन देवी की मौत को लेकर कई बातें सामने आईं, जिनमें से एक राजनीतिक कारणों से उनकी हत्या बताया गया। वहीं उनके पति उम्मेद सिंह पर भी उनकी हत्या का आरोप लगा, लेकिन वह साबित नहीं हो सके। फूलन देवी की मौत आज तक एक रहस्य ही बनी हुई है। इसी रहस्य से जुड़ी कुछ बातें आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
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राजीव गांधी
आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधन को 29 वर्ष हो चुके हैं। 21 मई 1991 को देशवासियों ने राजीव गांधी को वक्त से पहले खो दिया था। श्रीपेंरबदूर में एक धमाके में राजीव गांधी की मौत हो गई थी। यह तब तो आप जानते ही हैं, लेकिन हम आपको बताएंगे कि आखिर राजीव गांधी की हत्या की साज़िश को कब, कैसे, कहां और किसने अंजाम दिया था।
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सद्दाम हुसैन
ईराक पर लगभग दो दशकों से ज्यादा वक्त तक राज करने वाले तानाशाह सद्दाम हुसैन को करीब आठ साल पहले आज ही के दिन (5 नवंबर, 2006) मौत की सजा सुनाई गई थी। ईराक की स्पेशल ट्रिब्युनल ने सद्दाम हुसैन को 1982 में दुजाली कस्बे में हुई 148 शियाओं की हत्या का दोषी ठहराया था। इसके बाद उसी साल 30 दिसंबर को सद्दाम को फांसी पर लटका दिया गया और इसी के साथ ईराक में सद्दाम के आंतक का अंत हो गया। आइये जानते हैं इस वारदात के पीछे की पूरी कहानी।
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शेख मुजीबुर रहमान
बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के हत्यारों में से एक अब्दुल मजीद को पिछले साल हुई फांसी ने न केवल दक्षिण एशिया के राजनीतिक इतिहास के सबसे बुरे अध्याय का अंत किया है बल्कि इसने मुजीब की बेटी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की स्थिति को भी मजबूत किया है, वो भी खासकर तब, जब पिछले साल मुजीब की 100वीं जयंती को ‘मुजीब बरसा’ के नाम से मनाया जा चुका है। आइये, शेख मुजीबुर रहमान के हत्यारों और उनकी हत्या से जुडी कहानी को विस्तार रूप से सुनें।
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ज़ियाउर रहमान
15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ जूनियर अधिकारियों ने राष्ट्रपति भवन (शेख मुजीबुर रहमान का घर) पर टैंक लेकर हमला कर दिया था। इस हमले में शेख मुजीब, उनके परिवार और सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई थी। कैसे और क्यों की गयी थी यह हत्या, जानिये 'राजनीतिक हत्याओं' के इस एपिसोड में।
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ज़ुल्फिकार अली
पाकिस्तान के नौवें प्रधानमंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के संस्थापक को पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले पर 4 अप्रैल 1979 में फ़ांसी पर लटका दिया गया था। माना जाता है कि उनकी इस फांसी में उस समय पाकिस्तान के सैन्य शासक ज़िया उल हक़ का हाथ था। बीबीसी के मुताबिक 4 अप्रैल, 1979 को ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को रात दो बजे, रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। उनको रावलपिंडी जेल के 'ज़नान ख़ाने' में, जहाँ महिला कैदियों को रखा जाता है, एक 'सात गुणा दस' फ़ीट की कोठरी में कैद किया गया था।
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नेपाल का शाही परिवार हत्याकांड
नेपाल के इतिहास में 1 जून 2001 को काला दिन माना जाता है। काठमांडू के नारायणहिति राजमहल में राजपरिवार के 9 सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया गया था। सबसे चर्चित कहानी रही कि प्रिंस दीपेंद्र ने गोलियों की बौछार की थी। जानिए समय के साथ कितनी और कैसी कहानियां सामने आने से यह हत्याकांड एक पहेली बन गया।
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ओलोफ पामे
स्वीडन की जांच एजेंसियां 35 साल में अपने प्रधानमंत्री की हत्या की गुत्थी नहीं सुलझा पाईं। दो बार चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने ओलोफ पामे के हत्यारे को नहीं पकड़ पाईं। पामे की गोली मारकर हत्या 1986 में तब हुई थी जब वह स्टॉकहोम के सिनेमाघर में पिक्चर देखने के लिए पत्नी और बेटे के साथ आए थे। लेकिन पुलिस और अन्य एजेंसियां हत्यारे और हत्या के पीछे की साजिश का पता नहीं लगा सकीं। पिछले साल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखकर इस केस की जांच बंद करने की औपचारिक घोषणा कर दी गई थी। आज इसी केस से जुडी कुछ पेचीदा बातें हम आपको बताने जा रहे हैं।