बचपन में माँ बाप अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर उनकी ज़िन्दगी सँवारने की चाह में उन्हें हॉस्टल भेजते हैं, लेकिन वही बच्चे जब पढ़ लिख कर बड़े हो जाते हैं, तो वो अपने माँ बाप को उम्र के उस पड़ाव में “ओल्ड एज़ होल्म” यानी वृद्धाश्रम भेज देते हैं, जब उन्हें उन बच्चों की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है। बुढ़ापे में माँ-बाप को अपने बच्चों के प्यार, साथ और सम्मान की बहुत ज़रूरत होती है, लेकिन कुछ बच्चे इस बात को बिल्कुल नहीं समझते हैं। हमारे इस शो से उन सभी बच्चों को एक बहुत बड़ी सीख मिलेगी जो अपने माँ-बाप को बोझ समझते हैं। तो सुनिएगा ज़रूर।
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एहसास
अपने दादा-दादी की गोदी में सिर रखकर उनके साथ अपने दुःख-सुख की बातें करना सबको अच्छा लगता है, लेकिन जब दादा-दादी उनकी ज़िन्दगी की दुःख-सुख की बातें आपसे करे, तो उससे अनमोल चीज़ दुनिया में और कोई नहीं। एक ऐसा ही अनमोल अनुभव होगा आपको इस एपिसोड में जब एक पोता अपने दादा-दादी की उनकी दुःख-सुख की बातें करेगा।
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शाश्वत- ओल्ड एज़ होम
चाहे कितनी भी मुश्किलें आए, माँ-बाप कभी भी अपने बच्चे को बोझ की नज़र से नहीं देखते। तो बच्चे क्यों बड़े होने के बाद अपने माँ-बाप को बोझ समझकर उन्हें उनके ही घर से बेघर कर देते हैं? क्या आपके पास इस बात का जवाब है?
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योगा क्लासेस
शाश्वत ओल्ड एज होम दादाजी के लिए अपने घर से ज़्यादा अपना लगने लगा था। सुबह के योगा क्लासेस में जाने के लिए तो दादाजी बेसब्री से इंतज़ार किया करते थे। क्या थी इसकी वजह, चलिए इस एपिसोड में आपको बताते हैं।
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बुढ़ापा: खुशियों की चाबी
बचपन और बुढ़ापा इंसान की ज़िन्दगी के दो ऐसे चरण है जिनमें उन्हें सबसे ज़्यादा खुशियों की ज़रूरत होती है। इसलिए उन्हें इन दोनों चरण में ज़्यादा से ज़्यादा खुशियां देनी चाहिए। खासकर अपने बूढ़े माँ-बाप को एक बच्चे की लाड-प्यार कर उनका ख़याल रखिए।