बंगाली उपन्यासकार और वैज्ञानिक श्री राजशेखर बोस (परशुराम) ने एक छोटी कहानी ” चिकित्सक संकट” लिखी जो 1933 में प्रकाशित हुई। विलियम केन की ‘AMONG THE DOCTORS’ से प्रेरित यह कहानी एक आम आदमी के चिकित्सक संकट के बारे में है। यह कहानी एक ब्लैक कॉमेडी है जिसे हमने हिंदी में ‘मैं इलाज और वो’ में परिवर्तित किया है।
मूल कहानी : श्री राजशेखर बोस (परशुराम)
हिंदी रूपांतरण व लिपि – श्रीमती अनन्या रॉय
प्रयोग – चयन डे
एवं समस्त टीम ” बरानगर नांदीरोल “
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हादसा नंदू बाबू का
इस एपिसोड में सुनिए श्री राजशेखर बोस की रचित कहानी 'मैं इलाज और वो' का पहला भाग - हादसा नंदू बाबू का। इस भाग के मुख्य किरदार नंदू अपनी बुआ के साथ रहते हैं। दस वर्ष पहले पत्नी का देहांत हुआ और तभी से वे कुँवारे हैं। इसलिए बुआ को उनकी फ़िक्र लगी रहती है। उनका बस चले तो वे अभी के अभी, नंदू की शादी करवा दें। आज भी वो नंदू से इसी बारे में चर्चा कर रही हैं। लेकिन नंदू हमेशा की तरह इस बात को टाल रहा है। पर हाँ, इस बात को टालने की वजह कुछ और भी है। क्या है वो वजह, जानने के लिए सुनिए 'हादसा नंदू बाबू का'।
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खोपड़ी में छेद
इस एपिसोड में सुनिए श्री राजशेखर बोस की रचित कहानी 'मैं इलाज और वो' का दूसरा भाग - 'खोपड़ी में छेद'। अपने दोस्तों की बात मानकर नंदू बाबू डॉक्टर को अपनी चोट दिखाने जाते हैं। नंदू बाबू दवाखाने पहुंचे तो सही, लेकिन उनका नंबर बड़ी देर से आया जिस कारण वे परेशान हो गए। कहते हैं जब आदमी पहले से ही दर्द में हो, तो उसे छोटी-छोटी चीज़ों से भी चिड़चिड़ी मचती है। ऊपर से डॉक्टर साहब ने चेक कर अपनी डॉक्टरी की टेढ़ी-मेढ़ी भाषा में कोई अजीब सी बीमारी बताई और कहा कि यदि ज़रूरत पड़ी तो इलाज के लिए खोपड़ी में छेद करवाना पड़ेगा। यह सुनकर नंदू बाबू हक्के-बक्के रह गए।
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तम्बाकू में सल्फर ३०
इस एपिसोड में सुनिए श्री राजशेखर बोस की रचित कहानी 'मैं इलाज और वो' का तीसरा भाग - 'तम्बाकू में सल्फर 30'। पहले डॉक्टर से जब कोई ढंग का इलाज नहीं मिल पाया, तो फिर एक बार दोस्तों की सलाह मानकर नंदू बाबू दूसरे डॉक्टर के पास पहुंचे। वह थोड़े बूढ़े थे, शायद इसलिए उनके बात करने का अंदाज़ और बर्ताव भी थोड़ा पुराने ज़माने वाला था। वैसे नंदू बाबू की तकलीफ जानने से ज़्यादा दिलचस्पी उन्होंने उस पहले डॉक्टर की बुराई करने में दिखाई। जैसे-तैसे उन्होंने नंदू-बाबू से उनके दर्द से जुड़े सवाल-जवाब किये। लेकिन यह पता नहीं चल पा रहा था कि बीमारी क्या है। लगता नहीं की डॉक्टर को बीमारी पकड़ में आई हो! आपको क्या लगता है?
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उछल गोली अनारी बोली
इस एपिसोड में सुनिए श्री राजशेखर बोस की रचित कहानी 'मैं इलाज और वो' का चौथा भाग - 'उछल गोली अनारी बोली'। इस बार नंदू बाबू अपने दर्द का इलाज ढूंढने पहुंचे तीसरे डॉक्टर के पास। वैसे इन्होंने भी अपने प्रतिनिधि, डॉक्टर नेपाल की चुगली करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस डॉक्टर ने दवाईआं तो दी, लेकिन औरों की तरह ये भी बीमारी बताने में सटीक नहीं लग रहे थे।
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बब्बर शेरनी का भेजा
इस एपिसोड में सुनिए श्री राजशेखर बोस की रचित कहानी 'मैं इलाज और वो' का पांचवा भाग - 'बब्बर शेरनी का भेजा'। अब बारी थी हकीम मियां की नंदू बाबू को सलाह देने की। हकीम के इलाज का अंदाज़ भी कुछ निराला था। कभी सर पर उस्तरा चला देता, तो कभी चेहरे पर लेप लगा देता। हकीम के इलाज ने नंदू बाबू को पूरी तरह से हैरान और परेशान कर दिया।
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इलाइची की खुशबू
इस एपिसोड में सुनिए श्री राजशेखर बोस की रचित कहानी 'मैं इलाज और वो' का छठा भाग - 'इलाइची की खुशबू'। आखिरकार नंदू बाबू अपने पसंद के डॉक्टर के पास इलाज करवाने पहुंचते है। इस बार कोई डॉक्टर नहीं, बल्कि डॉक्टरनी थी। डॉक्टरनी जी ने नंदू बाबू की जांच-पड़ताल की और उनकी सारी तकलीफ दूर कर दी। क्योंकि नंदू बाबू को कुछ हुआ ही नहीं था। यह जानने के बाद नंदू बाबू राहत की सांस लेते हैं। लेकिन, ये डॉक्टरनी जी नंदू बाबू को सिर्फ दवाई नहीं देती, बल्कि उनसे कुछ ले भी लेती है।
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दिल्ली का लड्डू
इस एपिसोड में सुनिए श्री राजशेखर बोस की रचित कहानी 'मैं इलाज और वो' का सातवां भाग - 'दिल्ली का लड्डू'। फाइनली डॉक्टरनी साहिबा के आने से नंदू बाबू के जीवन और बीमारी, दोनों का इलाज हो गया। बुआ जी की समस्या भी हल हो गयी, क्योंकि अब उनके भतीजे का ख़याल रखने वाला भी कोई आ गया है।