दक्षिण भारत के लगभग हर घर में सुबह की शुरुआत इडली खाने से होती है। इसको एक पोषक आहार माना जाता है। दक्षिण भारत की टेंपल सिटी के तौर पर जाने जाते कांचीपुरम की इडली की बात ही कुछ निराली है। क्या आप जानते है कि क्यों स्पेशल है यहां की इडली।
पांच कारणों की वजह से कांचीपुरम की इडली को स्पेशल कहा जाता है।
1)सामग्री
2)इसको बनाने की विधि
3)इसे खाने के फायदे
4)इसको बनाने की परंपरागत विधि
5)इसका साइज़ और आकार
आइए आपको बताते हैं कि आखिर यह इडली बनती कैसे है। अक्सर इडली को चावल और उड़द दाल मिलाकर बनाया जाता है और हर जगह इसे सांभर और चटनी के साथ खाया जाता है। हालांकि कांचीपुरम में इसे अलग तरीके से बनाया जाता है। खास बात है कि कांचीपुरम इडली मंदिर में प्रसाद के तौर पर बांटी जाती है। लेकिन भारत में कई जगह आपको कांचीपुरम इडली खाने को मिल जाएगी।
कांचीपुरम के मंदिरों में बनती इस इडली को बांस की टोकरी में बनाया जाता है। इसे चावल के साथ साथ सूखा अदरक, काली मिर्च और मेथी दाना मिलाकर तैयार किया जाता है। खास बात है कि इसमें सफेद उड़द दाल की जगह काली उड़द दाल डाली जाती है। और खमीर उठने के लिए इससे आर्किड के पेड़ की पत्तियों पर कुछ समय के लिए रख कर छोड़ दिया जाता है।
यूं तो लगभग सभी मंदिरों में इसी तरह से इडली बनाई जाती है। इसे इडली में पड़ने वाली सामग्री के साथ साथ, इसका साइज भी काफी काफी खास है। यह इतनी बड़ी होती है कि कोई एक भी व्यक्ति इसे पूरा नहीं खा सकता।
इसके साथ साथ यही इडली कई दुकानों में भी अलग-अलग आकार में मिलती है। चावल के आटे में काली मिर्च के दाने और राई डालकर इसे तैयार किया जाता है। यकीन मानिए यह स्वाद कुछ ऐसा है जिसे आप शायद ही कभी भुला सके। इसे अलग अलग आकार के कप में चावल का घोल डालकर तैयार किया जाता है। इसलिए हर दुकान पर यह आपको अलग अलग साइज और आकार की देखने को मिलेगी।
इडली बनाने के लिए यहां के परंपरागत तरीके का इस्तेमाल किया जाता है
खास बात यह है कि कुछ दुकानों में इसे बाजरे के आटे से बनाया जाता है। यह इडली बनाने का एक परंपरागत तरीका है। अगर आप अपने दिन की शुरुआत इस इडली को खाकर करते हैं, तो आपको अगले तीन-चार घंटों तक बिल्कुल भूख नहीं लगेगी। यह इडली काफी नरम और हेल्दी है। आप इसे बिना सांभर और चटनी के भी खा सकते हैं। हालांकि अगर आप चाहे तो इसके साथ पुदीने की चटनी भी काफी स्वादिष्ट लगती है।
क्या आपने कभी यह इडली खाई है अगर नहीं खाई तो एक बार तो इसका स्वाद ज़रुर चखे