हंसी की फुलझड़ियां और मस्ती का पटाखा है, विशाल भारद्वाज की फ़िल्म पटाखा। हमेशा संजीदा फिल्में बनानेवाले विशाल पहली बार कुछ हटकर फ़िल्म लेकर आ रहे हैं। दो सगी बहनें, जिनमे प्यार तो दूर की बात, बल्कि वो दोनों हमेशा एक दूसरे की खून की प्यासी रहती हैं। ऐसे मज़ेदार कॉन्सेप्ट पर बनी इस फ़िल्म का ट्रेलर जब से जारी किया गया है, लोग इसका बेसब्री से इन्तज़ार कर रहे थे। ये फिल्म फुलझड़ी की तरह धीरे धीरे मनोरंजन तो करती है, लेकिन आइटम बम की तरह नहीं जो तुरंत ही आपके दिल को छू जाए।
फिल्म की कहानी
बाप दोनों बहनों से ससुराल में ना लड़ने की कसम ले लेता है
यह फ़िल्म मशहूर लेखक चरण सिंह पथिक की लघु कथा दो बहनें पर आधारित हैं। फ़िल्म राजस्थान के एक छोटे से गांव की कहानी है। यहां रहती दोनो बहने आपस मे लड़ती रहती हैं, परेशान होकर उनका पिता विजयराज उनका स्कूल छुड़ा देता है। खदान में काम करता उनका पिता, पैसों की ज़रूरत के चलते अपनी एक बेटी की शादी गांव के ठरकी पटेल, जिसका किरदार सानंद वर्मा निभा रहे है, से तय कर देता है। खास बात है कि उसे दोनो ही बहने पसंद नही करती, शादी से एक दिन पहले बड़की अपने प्रेमी बड़कू यानी नामित दास के साथ भाग जाती है। वहीं छोटी बहन अपने प्रेमी अभिषेक दुहान के साथ। खास बात है कि दोनों भाग कर ससुराल तो पहुंच जाती है, लेकिन वहां जाकर पता चलता है कि यहां पर भी यह दोनों बहने देवरानी-जेठानी है ।
बाप दोनों बहनों से ससुराल में ना लड़ने की कसम ले लेता है और दोनों बहनें इस कसम को निभाती तो है, लेकिन दोनों की ज़िंदगी से मानो रंग ही गायब हो जाता है। दोनो को करीब से जानता और दोनों बहनों को लड़ाने का काम करता है डिप्पर, जो दोनों को बंटवारे की सलाह देता है। फिर क्या था यह दोनों ही अपने-अपने पतियों जो कि दोनों भाई हैं को भड़काती हैं और अलग हो जाती है। अलग होने के बाद दोनों अपना सपना पूरा करती है। एक टीचर होने का और एक दूध की डेयरी खोलने का, लेकिन फिर भी दोनों की जिंदगी से रंग क्यों गायब है, इसी पर इस फिल्म की कहानी है।
अभिनय
सुनील ग्रोवर का काम बहुत ही बेहतरीन है
जहां तक अभिनय की बात हैं, फ़िल्म में बड़की का किरदार सान्या मल्होत्रा निभा रही है और छुटकी का किरदार राधिका मदान। फ़िल्म में विजय राज और सुनिल ग्रोवर जैसे कलाकार भी हैं। जहां विजय राज दोनों लड़कियों के पिता का किरदार निभा रहे हैं, वहीं सुनील ग्रोवर के किरदार का नाम डिप्पर हैं, जो इन दोनो बहनों को लड़ाने का काम करता है। फिल्म में दोनों ही हीरोइनों के साथ-साथ सुनील ग्रोवर का काम बहुत ही बेहतरीन है। दरअसल फिल्म में वही एक कारण है, जो बार-बार इन दोनों बहनों के बीच लड़ाई करा-करा कर मनोरंजन करता है। जब-जब आपको एहसास होता है कि दोनों की लड़ाई खत्म हो गई है, तभी डिप्पर उनकी लड़ाई करवा देता है।
यह पहली बार है कि वह इस तरह की कॉमेडी फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं।
विशाल भारद्वाज इससे पहले शेक्सपीयर के उपन्यास पर आधारित मक़बूल, ओमकार और हैदर जैसी फिल्मों के साथ-साथ कमीने, सात खून माफ और मटरू की बिजली का मन डोला जैसी फिल्मों का निर्देशन भी कर चुके हैं। यह पहली बार है कि वह इस तरह की कॉमेडी फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं। जो बेहतरीन है।
फिल्म की खास बात यह है कि इस फिल्म के बार-बार इन दोनों बहनों की लड़ाई हो की तुलना भारत और पाकिस्तान से की गई है, जो आपस में लड़ते भी हैं और एक दूसरे के बिना रहते भी नहीं। फिल्म राजस्थान में बनाई गई है और फिल्म में किरदारों को राजस्थानी भाषा में बात करते और राजस्थानी रंग-ढंग दिखाया गया है वह काफी रियलिस्टिक लगता है। यहां तक कि किरदारों के मेकअप में भी बहुत बारीकी से ध्यान रखा गया है।उनकी हेयर स्टाइल और दातों के रंग तक को काफी रियलिस्टिक रखने की कोशिश की गई है।
फिल्म थोड़ी बड़ी है इसे और काटा-छांटा जा सकता था। इसके अलावा फिल्म में जगह-जगह पर कई बार ठेठ राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है, जिसकी वजह से कई बार कुछ डायलॉग समझ में नहीं आते।
मेरी आवाज़ ही पहचान है! संगीत मेरी कल्पना को पंख देता है.. किताबी कीड़ा, अडिग, जिद्दी, मां की दुलारी.. प्राणी प्रेम ऐसा कि लोग मुझे लगभग पागल समझते हैं! खाने के लिए जीनेवाली और हद दर्जे की बातूनी.. लेकिन मेरा लेखन आपको बोर नहीं करेगा..