बचपन की यादें क्या होती हैं ये आप उनसे पूछिए जिन्होंने अपना बचपन 90 के बेहद खूबसूरत दशक में गुज़ारा है। आप किसी ऐसे व्यक्ति से बात करेंगे जिसने अपना बचपन उस दशक में गुज़ारा है तो आप उसकी आंखों में उस पुराने दौर में वापस लौटने की बेताबी ज़रूर देखेंगे। हो सकता है कि फिलहाल जो ये शो सुन रहा है, वो खुद ही 90 के दशक में अपना बचपन या जवानी गुज़ार चुका हो। तो आइये, आप भी हमारे साथ मिलकर ’90s की यादें’ शो के ज़रिए 90s के दौर के उन गोल्डन डेज़ को फिर एक बार जी लिजिये।
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90s वाला प्यार
90 के दशक में प्यार करना और उसका इज़हार करना इतना आसान नहीं हुआ करता था। मैसेज और चैटिंग तो कोई सोच भी नहीं सकता था। वैसे प्यार है ही बड़ा पेचीदा, कब, किससे हो जाए, कोई कह नहीं सकता। जब कोई प्यार में होता है तो वो अपने प्रेमी को अपनी भावना व्यक्त करने के बहाने ढूंढता रहता है। आजकल सोशल मीडिया ने इस पूरी प्रक्रिया को आसान बना दिया है। आज ये सोचकर हंसी आ सकती है कि कैसे 90 के दशक में प्रेमी प्यार को पाने के लिए मशक्कत करते थे। तब सोशल मीडिया और इंटरनेट तो था नहीं, लिहाजा तरीके बेहद अटपटे लगते थे, लेकिन उतने ही प्यारे भी थे।
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कागज़ की कश्ती
90 के दशक में प्यार करना और उसका इज़हार करना इतना आसान नहीं हुआ करता था। मैसेज और चैटिंग तो कोई सोच भी नहीं सकता था। वैसे प्यार है ही बड़ा पेचीदा, कब, किससे हो जाए, कोई कह नहीं सकता। जब कोई प्यार में होता है तो वो अपने प्रेमी को अपनी भावना व्यक्त करने के बहाने ढूंढता रहता है। आजकल सोशल मीडिया ने इस पूरी प्रक्रिया को आसान बना दिया है। आज ये सोचकर हंसी आ सकती है कि कैसे 90 के दशक में प्रेमी प्यार को पाने के लिए मशक्कत करते थे। तब सोशल मीडिया और इंटरनेट तो था नहीं, लिहाजा तरीके बेहद अटपटे लगते थे, लेकिन उतने ही प्यारे भी थे।
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क्रिकेट
90s के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम के पास सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली, अजहरुद्दीन और राहुल द्रविड़ जैसे स्टार क्रिकेटर्स से। इसे सचिन तेंडुलकर के करियर का भी गोल्डन दौर कहा जाता है। उस वक्त सचिन अपनी बैटिंग से पूरी दुनिया में छा गए थे। उनके करियर के कुछ बेस्ट मोमेंट्स की बात करें तो, 24 अप्रैल को 25वें बर्थडे पर लगाई गई सेन्चुरी शायद ही कोई क्रिकेट फैन भूला हो। आइये 90s के दशक में भारतीय क्रिकेट के कुछ और ख़ास पलों को याद करें।
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एंटीना
90s में टीवी देखने के लिए रोज़ एंटीना फिक्स करना पड़ता था, क्योंकि अगर कौवा बैठ गया, या ज़ोर से हवा चल गई तो एंटीना हिल जाता था और पिक्चर फिर क्लियर नहीं आती थी। तब कौवे भी होते थें, एंटीना के साथ; अब वो भी गायब हो गए हैं। एंटीना ठीक करने के लिए तीन लोगों की जरूरत पड़ती थी, एक जो छत पर चढके एंटीना घुमाएगा, दूसरा आंगन में मीडियेटर का काम करेगा और तीसरा टीवी के पास, ठीक होने की सूचना देगा। छत से आवाज़ आती, "आया क्या?", तो अंदर से आवाज आती, "अभीनहीं, थोड़ा और घुमाओ; बस-बस आ गया।"
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स्कूटर
स्कूटर भले ही अब इतिहास बनने के कगार पर हो, लेकिन 90 के दशक की ये शान हुआ करता था। हर मिडिल क्लास वाले घरों में ये शान की सवारी हुआ करती थी। स्कूटर एक मल्टी टास्किंग व्हीकल था। बच्चों को स्कूल छोड़ना हो, घर के =लिए गैस सिलेंडर लाना हो या फिर कहीं घूमने जाना हो। स्कूटर हर जगह साथ देता था।
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90s वाली खेल-कूद
आज के दौर की तरह 90s में मशीने हमारा मनोरंजन नहीं किया करती थी, बल्कि बच्चे घर के बाहर निकलकर, साथ मिलकर अपने दोस्तों के साथ घंटों ग्राउंड में अलग-अलग खेल खेला करते थे। इधर से उधर दौड़ते रहते थे। एक दूसरे के साथ बैठते थे। उस दौर के बच्चों को जो आनंद आता था वह अब नामुमकिन लगता है। आइए फिर याद करें उन खेलों को जिन्होंने हमारे बचपन को सुनहरा बना दिया। इनमें से कुछ आज के बच्चों को पता है, वहीं कुछ अब बिल्कुल ही गायब हो चुके हैं।
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90s वाला बर्थडे
उस ज़माने में किसी भी दोस्त का बर्थडे हो, एक्साइटमेंट ऐसी होती थी मानो अपना ही बर्थडे हो। फिर केक काटने के बाद जब प्लेट में आंटी समोसा, आलू की चिप्स और केक का टुकड़ा प्लेट में रखती थी, तो वो डिश दुनिया की सबसे अच्छी दावत लगती थी। आज कल तो जन्मदिन सिर्फ होटलों में पार्टी करने तक ही सिमित रह गया है। काश वो जन्मदिन वापस आ सकते हैं।
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टेलीफोन वॉकमेन रेडियो
उस ज़माने में अगर किसी बच्चे के पास वॉकमैन या रेडियो होता तो बाकि बच्चे उसे ऐसे देखते थे मानों उसके पास कोई बहुत अनमोल चीज़ हो और सारे बच्चे उसके आसपास जमा हो जाते थे। गाना सुनने के लिए ये तब का सबसे लोकप्रिय साधन थे। लोग अक्सर वॉकमैन के साथ मॉर्निंग वॉक भी करते थे, जैसे आजकल स्मार्टफोन के साथ करते हैं। और लैंडलाइन फोन, वो तो जैसे अब इतिहास बन गया है। उस ज़माने में लैंडलाइन को सबसे अहम चीज़ मानी जाती थी। इतना ही नहीं, जिसके घर में फोन नहीं होता था वो पड़ोसी के घर का नंबर दे जाता था। यानी तब ये लैंडलाइन पड़ोसियों से भी रिश्ते मज़बूत करने के काम आता था।
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अपनी पाठशाला
स्कूल लाइफ 90 के दशक के बच्चों का सबसे सुनहरा दौर था। स्कूल की यादें ज़िन्दगी का वो हिस्सा होती है, जिसकी कीमत उसके चले जाने के बाद पता चलती है। 90 के दशक के छात्र शायद आखिरी पीढ़ी थे जिन्होंने दोस्तों के साथ खेलने में समय बिताया और मोबाइल गेम्स पर नहीं। उन बच्चों के स्कूल के दोस्त होते थे, फेसबुक के नहीं। वे सही मायने में अपने बचपन को जीते थे। इन दिनों, बाहर खेलना के बजाय बच्चे टेक्सटिंग में, वीडियो गेम खेलने में और इंटरनेट पर सर्फिंग में मज़ा ढूंढते हैं। सोशल मीडिया लाइफ और डिजिटल नेटवर्किंग के हटकर 90s के स्कूल लाइफ की हमारे पास बहुत अच्छी यादें हैं।
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गर्मियों की छुट्टी
गर्मी की छुट्टियाँ किसी भी बच्चे को बहुत अच्छी लगती हैं। बच्चों के लिए विद्यालय की ओर से यह बहुत ही अच्छा उपहार होता है। गर्मी की छुट्टियों का नाम सुनते ही कई विचार दिमाग में आने लगते हैं। हर एक बच्चा इसे अपने-अपने तरीके से बिताता है। बहुत सारी पढ़ाई के बाद इन गर्मी और आलस भरे दिनों में जब घर से बाहर निकलने का मन नहीं करता तो गर्मी की छुट्टिया ही हैं जो बच्चों को आराम पहुँचाती है। घर में पंखे या कूलर की हवा में आराम से बैठना या फिर गाँव जाकर अपने साथियों के साथ पेड़ की ठहनियों पर चढ़कर कच्चे आम खाना। शायद इसलिए गर्मी की छुट्टियाँ ज़िन्दगी भर यादगार रहती है।